अपने कुल की प्रथा नहीं है
मैं तो इतना भाग्यवान हूँ जिसे अभावों ने है पाला।
चिंताओं की सेज मिली है और दुखों का मिला दुशाला।।
यह मैं कैसे घोषित कर दूँ, मेरे मन में व्यथा नहीं है-
लेकिन उनसे हार मानना, अपने कुल की प्रथा नहीं है।।
कविवर शंकर द्विवेदी और उनके सृजन की पृष्ठभूमि* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कविवर श्री शंकर द्विवेदी मेरे साथी और दोस्त थे, उम्र में ही ...
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