गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

शंकरलाल द्विवेदी : अपने कुल की प्रथा नहीं है


 अपने कुल की प्रथा नहीं है 

मैं तो इतना भाग्यवान हूँ जिसे अभावों ने है पाला।

चिंताओं की सेज मिली है और दुखों का मिला दुशाला।। 

यह मैं कैसे घोषित कर दूँ, मेरे मन में व्यथा नहीं है-

लेकिन उनसे हार मानना, अपने कुल की प्रथा नहीं है

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